छठ पूजा 2025 – सूर्य उपासना का पवित्र पर्व | Chhath Puja 2025 Puja Vidhi, Story & Significance
अंबिकापुर में छठ पूजा धूमधाम से मनाया जा रहा है। अंबिकापुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में श्रद्धालुओं की सुविधा के अनेक स्थानों पर छठ घाटों की स्थापना की गयी है। अंबिकापुर में शंकर घाट , ग्राम करजी और ग्राम लिबरा अंतर्गत घुनघुट्टा नदी के घाट पर, और ग्राम मेण्ड्रा कलां के घुनघुट्टा नदी पर स्थित श्रीराम घाट पर छठ पूजा हेतु विशेष व्यवस्था की गयी है।
सौभाग्य से आज तीसरे दिन संध्या अर्घ्य के समय ग्राम मेण्ड्रा कलां में छठ पूजा दर्शन का अवसर मिला।
आइये छठ महापर्व के इस शुभ अवसर पर इस महापर्व के बारे में जानें –
छठ पूजा क्या है?
छठ पूजा भारत का एक प्राचीन और पवित्र पर्व है जो सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। यह त्यौहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में बहुत श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में भक्त सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करते हैं।
सरगुजा संभाग छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में स्थित है तथा यह बिहार और झारखण्ड से लगा हुआ है। इस कारण यहाँ सांस्कृतिक आदान प्रदान के फलस्वरूप यहाँ भी छठ महापर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाने लगा है।
छठ पूजा का इतिहास और पौराणिक कथा
छठ पूजा की परंपरा बहुत प्राचीन है।
महाभारत काल में द्रौपदी और पांडवों ने राज्य की पुनर्प्राप्ति और सुख-शांति के लिए यह व्रत किया था।
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव की पूजा की थी। तभी से इस पर्व को “छठ पूजा” के रूप में मनाया जाने लगा।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा शुद्धता, संयम और आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
सूर्य देव को जीवन, ऊर्जा और आरोग्य का दाता माना जाता है, जबकि छठी मैया को संतान और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है।
यह पर्व हमें प्रकृति, जल और सूर्य के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की प्रेरणा देता है।
छठ पूजा के चार पवित्र दिन
छठ पूजा की तैयारी छठ से हफ्तों पहले शुरू हो जाती है। लेकिन यह महापर्व चार दिन चलता है। हर दिन का कार्यक्रम अलग अलग होता है। व्रत विशेष रूप से महिलाएं रखती हैं लेकिन घर के सभी लोगों का सहयोग रहता है , साथ ही समाज के अन्य लोग भी इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और अपना सहयोग देते हैं। आइये जानते हैं इन चार दिनों में क्या क्या होता है।
पहला दिन - नहाय-खाय
व्रती (व्रत रखने वाली स्त्रियां ) गंगा स्नान करती हैं, घर की सफाई करती हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन कद्दू, चना दाल और अरवा चावल का सेवन शुभ माना जाता है।
दूसरा दिन - खरना
व्रती पूरा दिन निर्जला उपवास रखती हैं और शाम को गुड़ की खीर, रोटी और केले से प्रसाद बनाती हैं।
यह प्रसाद घर और पड़ोस में बाँटा जाता है।
तीसरा दिन - संध्या अर्घ्य
सूर्यास्त के समय व्रती नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को पहला अर्घ्य अर्पित करती हैं। इस समय वातावरण छठ गीतों और जयकारों से गूंज उठता है।
चौथा दिन - उषा अर्घ्य
अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है।
व्रती सूर्य की पहली किरणों के साथ आशीर्वाद मांगती हैं और परिवार की खुशहाली की प्रार्थना करती हैं।
छठ पूजा की विशेषताएँ
प्रसाद में ठेकुआ, कसार, गुड़ की खीर और फल प्रमुख रूप से बनाए जाते हैं।
पूजा के समय नमक, प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता।
यह पर्व साफ-सफाई, पर्यावरण और सामाजिक एकता का प्रतीक है।
- पूजा में प्रयुक्त सभी चीजें प्राकृतिक चीजों से निर्मित होती हैं जैसे , बांस के सूपे , टोकरियाँ , गन्ने , फल फूल इत्यादि।
- यह पर्व लोगों को प्रकृति के निकट ले जाता हैं।
“केलवा जे फरेला घवद से…” जैसे पारंपरिक छठ गीतों से वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
छठ पूजा का सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश
छठ पूजा हमें यह सिखाती है कि प्रकृति और मनुष्य का गहरा संबंध है।
यह पर्व आत्मसंयम, अनुशासन, एकता और स्वच्छता का संदेश देता है।
सूर्य देव की पूजा से हमें जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता का अनुभव होता है।
निष्कर्ष
छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक व्रत नहीं बल्कि जीवन की ऊर्जा, कृतज्ञता और आत्मशुद्धि का उत्सव है।
जब लाखों भक्त डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो वह दृश्य आस्था और एकता का प्रतीक बन जाता है।
“जय छठी मइया!” — यही इस पर्व का सबसे सुंदर संदेश है।
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